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‘जजों की नियुक्ति सरकार को सौंपना डिजास्टर होगा’, कपिल सिब्बल ने कॉलेजियम सिस्टम में भी बताई कमी

<p style="text-align: justify;"><strong>Kapil Sibal On Judges Appointment:</strong> पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में कानून मंत्री रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा है कि केंद्र सरकार न्यायपालिका &lsquo;स्वतंत्रता के अंतिम गढ़&rsquo; को अपने हाथों में लेने का प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा कि अदालतें इसके खिलाफ मजबूती के साथ खड़ी रहेंगी. साथ ही उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति पर विवाद पर भी अपनी बात रखते हुए कॉलेजियम सिस्टम में कमी बताई है.</p> <p style="text-align: justify;">कपिल सिब्बल ने एनडीटीवी के साथ बातचीत में कई बातों पर चर्चा की है. जजों की नियुक्ति को लेकर खींचतान और केंद्र के साथ तनाव पर कपिल सिब्बल ने साफ कर दिया कि वर्तमान क़ॉलेजियम सिस्टम में कमियां हैं, लेकिन सरकार को पूरी तरह से स्वतंत्रता दे देना उयुक्त तरीका नहीं है. ये कोई आगे बढ़ने का रास्ता नहीं है.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>&lsquo;जजों की नियुक्ति सरकार के हाथ में आपदा होगी&rsquo;</strong></p> <p style="text-align: justify;">कॉलेजियम की सिफारिशों को केंद्र की मंजूरी में देरी हो रही है. दूसरी ओर, कानून मंत्री किरेन रिजिजू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ समेत अन्य नेताओं ने न्यायपालिका की आलोचनाओं की झड़ी लगा दी, जिसके बाद ये मुद्दा बढ़ गया. मामले पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि सरकार जजों की नियुक्ति पर अंतिम निर्णय लेना चाहती है और अगर ऐसा हुआ तो ये आपदा होगी. उन्होंने कहा कि वो किसी अन्य मुद्दों पर चुप नहीं रहे तो इस पर चुप क्यों रहेंगे. न्यायपालिका स्वतंत्रता का अंतिम गढ़ है, जिसे उन्होंने अभी तक कब्जा नहीं किया है.</p> <p style="text-align: justify;">कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्होंने (सरकार) ने चुनाव आयोग से लेकर राज्यपालों के पद तक, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से लेकर ईडी और सीबीआई तक अन्य सभी संस्थानों पर कब्जा कर रखा है. जांच विभाग एनआईए और निश्चित रूप से मीडिया पर भी कब्जा हो गया है.</p> <p style="text-align: justify;"><strong>अदालतों की छुट्टियों पर सिब्बल</strong></p> <p style="text-align: justify;">इसके अलावा, कपिल सिब्बल ने अदालतों की चुट्टियों को लेकर कानून मंत्री किरेन रिजिजू की टिप्पणी पर बात करते हुए कहा कि ये पूरी तरह से अनुचित है. कानून मंत्री प्रैक्टिसिंग एडवोकेट नहीं हैं. एक जज याचिकाओं की सुनवाई करने, अगले दिन की सुनवाई की पृष्ठभूमि को पढ़ने और निर्णय लिखने में 10 से 12 घंटे का समय बिताता है. उनकी छुट्टियां तो स्पिलओवर को संभालने में बीतती हैं. उन्होंने दावा किया कि अदालत सांसदों की तुलना में ज्यादा मेहनत करती हैं. पिछले एक साल में जनवरी से लेकर दिसंबर तक, संसद ने सिर्फ 57 दिनों तक काम किया. तो वहीं कोर्ट ने एक साल में 260 दिनों तक काम किया. तो क्या कभी कोर्ट ने आपसे (संसद) से पूछा कि आप काम क्यों नहीं कर रहे?</p> <p style="text-align: justify;"><strong>ये भी पढ़ें: <a title="6 सदस्य, वीटो पावर; आखिर क्या है NJAC, जिस पर 6 साल बाद सुप्रीम कोर्ट से भिड़ गई है मोदी सरकार" href="https://ift.tt/pAUCuMG" target="_self">6 सदस्य, वीटो पावर; आखिर क्या है NJAC, जिस पर 6 साल बाद सुप्रीम कोर्ट से भिड़ गई है मोदी सरकार</a></strong></p>

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